आज लॉकडाउन के कारण समय मिला या ये कहे की जहाँ सारी दुनिया रात दिन भागी जा रही थी वही उसी दिन रात की दौड़ मे मै भी भागा जा रहा था. मेरी पिछली प्रवष्टि सन 2008 मे पोस्ट की गईं थी उस बात को भी लगभग 12 साल हो गए है।
जब आदमी भागदौड़ भरी भरी जिंदगी का आदि हो जाता है तो जो फुर्सत के समय की वो कामना करता है और अगर वह समय उसे आकसामयिक मिल जाता है तो वह विस्मित हो जाता है जैसा की मै अभी हो रहा हू कुछ दिन तो इस नई दिनचर्या से सामंजस्य बैठाने मै ही लग गये।
लिखना तो बहुत कुछ चाहता हू पर शायद लग रहा है की आदत नहीं रही अब पर कोशिश कर रहा हु और हो सकेगा तो अब आने वाले समय मैं निरंतरता रखने कोशिश करूँगा।
बहुत समय निकल गया पिछले कुछ दिनों में आये इस ठहराव ने बहुत कुछ बदल दिया है। इतने सालो के बाद जो ब्लॉग निरन्तर किसी समय पढता था अब इनदिनों उनको याद करके ढूंढ रहा हू कुछ निरंतरता रखे हुए है, निष्क्रिय है तो कुछ मिल नही रहे है।
पिछली पोस्ट जो 2008 की थी बिटटू के पहले जन्मदिन की वही आज कितनी बड़ी हो गई है, कंधे तक आने लगी है तो सोचता हू समय कितना जल्दी निकल रहा है. और इस समय (लॉकडाउन ) ने मुझे कुछ समय दिया है की सोच सकु की पिछले इतने सालो मे क्या क्या पिछे छूट गया.
सोचता हू तो पाता हू की इन सालो मे बहुत ही अधीरता, अनिरंतरता और किसी भी चीज के प्रति अनिश्चित हो गया हु. बस भाग रहा हू और निरंतर भाग रहा हूँ।
अब लगता है जन्दगी मे ठहराव जरुरी है ताकी हम सोच सके की क्या हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे है.
उम्मीद करता हूँ आगे निरन्ता बनी रहेगी।
जब आदमी भागदौड़ भरी भरी जिंदगी का आदि हो जाता है तो जो फुर्सत के समय की वो कामना करता है और अगर वह समय उसे आकसामयिक मिल जाता है तो वह विस्मित हो जाता है जैसा की मै अभी हो रहा हू कुछ दिन तो इस नई दिनचर्या से सामंजस्य बैठाने मै ही लग गये।
लिखना तो बहुत कुछ चाहता हू पर शायद लग रहा है की आदत नहीं रही अब पर कोशिश कर रहा हु और हो सकेगा तो अब आने वाले समय मैं निरंतरता रखने कोशिश करूँगा।
बहुत समय निकल गया पिछले कुछ दिनों में आये इस ठहराव ने बहुत कुछ बदल दिया है। इतने सालो के बाद जो ब्लॉग निरन्तर किसी समय पढता था अब इनदिनों उनको याद करके ढूंढ रहा हू कुछ निरंतरता रखे हुए है, निष्क्रिय है तो कुछ मिल नही रहे है।
पिछली पोस्ट जो 2008 की थी बिटटू के पहले जन्मदिन की वही आज कितनी बड़ी हो गई है, कंधे तक आने लगी है तो सोचता हू समय कितना जल्दी निकल रहा है. और इस समय (लॉकडाउन ) ने मुझे कुछ समय दिया है की सोच सकु की पिछले इतने सालो मे क्या क्या पिछे छूट गया.
सोचता हू तो पाता हू की इन सालो मे बहुत ही अधीरता, अनिरंतरता और किसी भी चीज के प्रति अनिश्चित हो गया हु. बस भाग रहा हू और निरंतर भाग रहा हूँ।
अब लगता है जन्दगी मे ठहराव जरुरी है ताकी हम सोच सके की क्या हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे है.
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